“फ़र्ज़ी और तंग करने करने के लिए मुक़दमे करना क़ानूनी जागरूकता नहीं”, इलाहबाद हाईकोर्ट ने एससी/एसटी अधिनियम के तहत दर्ज मुक़दमे को रद्द करने का दिया आदेश

“फ़र्ज़ी और तंग करने करने के लिए मुक़दमे करना क़ानूनी जागरूकता नहीं”, इलाहबाद हाईकोर्ट ने एससी/एसटी अधिनियम के तहत दर्ज मुक़दमे को रद्द करने का दिया आदेश

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  • November 27, 2022
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इलाहबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि क़ानूनी जागरूकता का अर्थ दूसरों के खिलाफ फ़र्ज़ी मुक़दमे करना नहीं होता है।

कोर्ट ने आदेश में कहा है कि अदालतों का उपयोग दूसरों के उत्पीड़न के उपकरण के रूप में किया जाता है।

यह आदेश जस्टिस ओम प्रकाश त्रिपाठी की पीठ ने एक आपराधिक मामले में दायर आवेदन की सुनवाई करते हुए दिया है।

क्या है मामला?
इस मामले में जिला ललितपुर के थाना जखलौन में परसु और दो अन्य लोगों के खिलाफ आई पी सी की धारा 323, 504, 506, और एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामला (संख्या 108/2021) दर्ज कराया गया था।

इस मामले में निचली अदालत ने 9 नवंबर 2021 को आदेश जारी कर आवेदकों/आरोपियों को ट्रायल के लिए सम्मन जारी किया था।

निचली अदालत के इसी आदेश के खिलाफ आरोपियों ने हाईकोर्ट में आवेदन किया था।

आवेदक पक्ष का तर्क –
आवेदक पक्ष का कहना था कि वादी ने पूर्व में भी आवेदकों के खिलाफ आई पी सी की धारा 354, 376, 323, 504, 511 ,और एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामला (आपराधिक संख्या 124/2019) दर्ज कराया था। लेकिन जांच के बाद पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी। रिपोर्ट के खिलाफ विरोध याचिका दायर की गई थी, जिसे ख़ारिज कर दिया गया था।

आवेदक पक्ष का कहना था कि रंजिश के चलते उक्त झूठी एफ आई आर दर्ज कराई गई थी और निचली अदालत का आदेश कानून की नज़र में अवैध, अन्यायपूर्ण और अनुचित है। इसके बाद आवेदकों को परेशान करने के इरादे से यह मुकदमा दर्ज कराया गया है।

ग़ौरतलब है कि इस मामले में आवेदन लंबित रहने के दौरान दोनों पक्षों में समझौता हो गया था जिसकी ट्रायल कोर्ट ने पुष्टि भी कर दी थी।

समझौते के अनुसार दोनों पक्षों के बीच केस न लड़ने पर सहमति बनी थी।

कोर्ट ने माना कि प्रथम दृष्टया यह मामला आवेदकों को परेशान करने के इरादे से एससी/एसटी अधिनियम के घोर दुरूपयोग का उदाहरण है।

इस तरह के मामले न्यायिक व्यवस्था पर बोझ पैदा करते हैं। अदालतों पर इस तरह के मुक़दमो का विशेष रूप से एससी/एसटी अधिनयम का अत्यधिक बोझ है।

कोर्ट ने माना कि अदालतों का मूल्यवान समय इस तरह के तुच्छ और तंग करने वाले मुक़दमो में नष्ट होता है।

अदालतों का उपयोग दूसरों के उत्पीड़न के उपकरण के रूप में किया जाता है। समय के अभाव में महत्वपूर्ण मुक़दमे लंबित रहते हैं।
कोर्ट ने कहा कि ऐसे फ़र्ज़ी,तुच्छ और दूसरों को तंग करने वाले मामलों की जांच होनी चाहिए।

क़ानूनी जागरूकता का अर्थ दूसरों को तंग करने के लिए फ़र्ज़ी मुक़दमे करना नहीं होता है। मुक़दमे वास्तविक कारणों के लिए होने चाहिए।

कोर्ट ने मामले के पूरे तथ्यों पर विचार के बाद निचली अदालत के आदेश और मामले की पूरी आपराधिक प्रक्रिया को रद्द करने का आदेश दिया है।

अपने आदेश में कोर्ट ने इस मामले में मुक़दमा करने वाली ललितपुर की सरस्वती पर 20 हज़ार का जुरमाना भी लगाया है।

केस टाइटल – परसु बनाम स्टेट ऑफ़ यु पी और अन्य (Criminal Appeal No 69 of 2022)

पूरा आदेश यहाँ पढ़ें –

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